मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत मुस्लिम महिलाओं के अधिकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 मुस्लिम महिलाओं को तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) से बचाने और तलाक के बाद उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत मुस्लिम महिलाओं के मुख्य अधिकार 1. तत्काल तीन तलाक को अवैध घोषित किया गया - यह अधिनियम तत्काल तीन तलाक (मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक) की प्रथा को प्रतिबंधित और अपराध बनाता है। - इस तरीके से मुस्लिम पति द्वारा तलाक की कोई भी घोषणा अमान्य और अवैध है। 2. कानूनी सुरक्षा का अधिकार - अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पति के खिलाफ तत्काल तीन तलाक के माध्यम से तलाक देने का प्रयास करती है, तो वह उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है। 3. तीन तलाक के लिए पति की सजा - कानून का उल्लंघन करने पर पति को 3 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। - अपराध संज्ञेय है, यानी पुलिस उसे बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। 4. भरण-पोषण का अधिकार (मेहर और नफाका) - तलाकशुदा मुस्लिम महिला को अपने और अपने आश्रित बच्चों के लिए अपने पति से निर्वाह भत्ता (नफाका) मांगने का अधिकार है। - महिला की वित्तीय जरूरतों के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा राशि तय की जाती है। 5. बच्चों की अभिरक्षा का अधिकार - तलाक के बाद महिला को अपने नाबालिग बच्चों की अभिरक्षा मांगने का अधिकार है। - बच्चे के कल्याण के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाता है। 6. पति की जमानत का विरोध करने का अधिकार - चूंकि अपराध समझौता योग्य है, इसलिए मुस्लिम महिला को अदालत में अपने पति की जमानत याचिका का विरोध करने या उससे सहमत होने का अधिकार है। - मजिस्ट्रेट पत्नी के बयान को सुनने के बाद ही जमानत देता है। अधिनियम की सीमाएं - कानून केवल एक बार में तीन तलाक को संबोधित करता है, तलाक के अन्य रूपों को नहीं। - इसमें तलाक के बाद भरण-पोषण की अवधि को स्पष्ट नहीं किया गया है, जो अभी भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधीन है।
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