उत्तराधिकार प्रमाणपत्र भारत में एक सिविल न्यायालय द्वारा मृतक व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों को जारी किया जाने वाला एक कानूनी दस्तावेज है। यह उत्तराधिकारियों को मृतक से संबंधित ऋण, प्रतिभूतियाँ या अन्य चल संपत्तियाँ (जैसे बैंक बैलेंस, शेयर, बीमा, आदि) का दावा करने और उन तक पहुँचने की अनुमति देता है। उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के बारे में मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं: यह भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (मुख्य रूप से धारा 370-390) द्वारा शासित है। यह तब लागू होता है जब कोई व्यक्ति बिना वसीयत छोड़े मर जाता है। प्रमाणपत्र धारक को मृतक के बकाया ऋण और प्रतिभूतियों को इकट्ठा करने और उन्हें हस्तांतरित या भुनाने का अधिकार देता है। यह भूमि या घर जैसी अचल संपत्ति का स्वामित्व नहीं देता है। इसके लिए कानूनी उत्तराधिकार या अन्य दस्तावेजों की आवश्यकता हो सकती है। कौन आवेदन कर सकता है: मृतक का कानूनी उत्तराधिकारी या निकटतम संबंधी उस जिला न्यायालय में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कर सकता है जहाँ मृतक अंतिम बार रहता था या जहाँ संपत्तियाँ स्थित हैं। प्रक्रिया: आवश्यक दस्तावेजों (मृत्यु प्रमाण पत्र, संबंध प्रमाण, ऋण/प्रतिभूतियों का विवरण) के साथ याचिका दायर करें। न्यायालय सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करता है और इसे समाचार पत्र में प्रकाशित कर सकता है। यदि कोई आपत्ति प्राप्त नहीं होती है, और दावा वैध है, तो न्यायालय प्रमाण पत्र जारी कर सकता है। उद्देश्य: बैंकों, कंपनियों और वित्तीय संस्थानों को आम तौर पर मृतक के नाम पर उनके उत्तराधिकारियों को धन या प्रतिभूतियाँ जारी करने के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। मुझे बताएं कि क्या आपको उत्तराधिकार प्रमाण पत्र याचिका के लिए प्रारूप या नमूना चाहिए।
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