कोर्ट मैरिज और पंजीकृत विवाह शब्दों का प्रयोग अक्सर आम बातचीत में एक-दूसरे के स्थान पर किया जाता है, लेकिन भारतीय कानून के तहत, इनके अलग-अलग कानूनी अर्थ और प्रक्रियाएँ हैं। भारतीय कानून के तहत कोर्ट मैरिज और पंजीकृत विवाह के बीच अंतर की स्पष्ट व्याख्या इस प्रकार है: 1. कोर्ट मैरिज कोर्ट मैरिज, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत सीधे किसी विवाह अधिकारी के समक्ष संपन्न विवाह को संदर्भित करता है। यह एक नागरिक अनुबंध है और इसके लिए किसी धार्मिक समारोह की आवश्यकता नहीं होती। मुख्य विशेषताएँ: भारत के सभी नागरिकों पर लागू, चाहे उनका धर्म, जाति या आस्था कुछ भी हो। जोड़ा उस जिले के विवाह अधिकारी को 30 दिन का नोटिस देता है जहाँ कम से कम एक पक्ष रहता है। विवाह अधिकारी आपत्तियों के लिए नोटिस प्रकाशित करता है। यदि कोई वैध आपत्ति न हो, तो विवाह तीन गवाहों की उपस्थिति में संपन्न होता है। विवाह संपन्न होने के बाद, विवाह अधिकारी द्वारा विवाह प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। इसमें किसी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती; पूरी प्रक्रिया एक सरकारी प्राधिकारी के समक्ष संपन्न होती है। शासकीय कानून: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 2. पंजीकृत विवाह पंजीकृत विवाह आमतौर पर ऐसे विवाह को संदर्भित करता है जो पहले ही धार्मिक या पारंपरिक रीति-रिवाजों (जैसे, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख विवाह) के माध्यम से संपन्न हो चुका हो और बाद में कानूनी मान्यता के लिए उपयुक्त प्राधिकारी के पास पंजीकृत कराया गया हो। मुख्य विशेषताएँ: जोड़े को पहले पारंपरिक/धार्मिक विवाह संपन्न करना होगा। फिर, वे विवाह उप-पंजीयक के पास उस विवाह के पंजीकरण के लिए आवेदन करते हैं। विवाह निम्नलिखित कानूनों के तहत पंजीकृत होता है: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (यदि दोनों हिंदू, जैन, बौद्ध या सिख हैं) ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 मुस्लिम पर्सनल लॉ (व्यक्तिगत रिकॉर्ड के लिए) विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (अंतर-धार्मिक विवाहों या नागरिक पंजीकरण का विकल्प चुनने वालों के लिए) विवाह के प्रमाण (जैसे, फोटो, निमंत्रण पत्र), पहचान पत्र और गवाह जैसे दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता होती है। सत्यापन के बाद विवाह प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। शासकीय कानून: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 विशेष विवाह अधिनियम, 1954 धर्म के आधार पर अन्य व्यक्तिगत कानून मुख्य अंतर प्रक्रिया की प्रकृति: कोर्ट मैरिज एक नागरिक विवाह है, जबकि पंजीकृत विवाह केवल पहले से संपन्न पारंपरिक/धार्मिक विवाह का अभिलेख है। समारोहों की आवश्यकता: कोर्ट मैरिज के लिए धार्मिक रीति-रिवाजों की आवश्यकता नहीं होती; पंजीकृत विवाह के लिए आवश्यक है कि युगल पहले से ही धार्मिक/प्रथागत रीति-रिवाजों से विवाहित हो। समय-सीमा: कोर्ट मैरिज में 30 दिनों की सार्वजनिक सूचना अवधि शामिल होती है। पंजीकृत विवाह आमतौर पर पारंपरिक विवाह के बाद बिना किसी अनिवार्य सूचना अवधि के किया जाता है (विशेष विवाह अधिनियम के तहत किए जाने को छोड़कर)। अधिकार क्षेत्र: कोर्ट मैरिज का संचालन विशेष विवाह अधिनियम के तहत नियुक्त विवाह अधिकारी द्वारा किया जाता है। पंजीकृत विवाह का संचालन उपयुक्त विवाह कानूनों के तहत रजिस्ट्रार/उप-रजिस्ट्रार द्वारा किया जाता है। गवाह: दोनों प्रक्रियाओं में गवाहों की आवश्यकता होती है, लेकिन कोर्ट मैरिज में, गवाहों की आवश्यकता अनुष्ठान के समय होती है, जबकि पंजीकृत विवाह में, गवाह पहले से हो चुके विवाह की पुष्टि करते हैं। संक्षेप में कोर्ट मैरिज एक धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत किसी सरकारी अधिकारी के समक्ष किया जाने वाला कानूनी विवाह है, जिसमें किसी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है। पंजीकृत विवाह पहले से हो चुके किसी धार्मिक या प्रथागत विवाह का कानूनी दस्तावेजीकरण है।
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