मेंटेनेंस केस भारतीय कानूनी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण विधि प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य आर्थिक सहायता या आर्थिक वर्गीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से एक पति या पत्नी के द्वारा दूसरे पति या पत्नी की दिशा में की जाती है। यह समस्याओं को समाधान करने के लिए कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करने का एक तरीका हो सकता है। भारतीय कानून में, मेंटेनेंस केस निम्नलिखित कानूनी विधियों के तहत चलते हैं: हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955: यह अधिनियम भारत में हिन्दू समुदाय के व्यक्तियों के लिए विवाह, तलाक, पुनर्विवाह, सम्पत्ति और मेंटेनेंस के मामलों को संरचित करने के लिए है। क्रिश्चियन विवाह अधिनियम, 1872: यह अधिनियम क्रिश्चियन समुदाय के व्यक्तियों के विवाह और तलाक के मामलों को व्यवस्थित करने के लिए है। मुस्लिम शेरियत परिप्रेक्ष्य में शादी और तलाक अधिनियम, 1937: यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों के विवाह और तलाक के मामलों को व्यवस्थित करने के लिए है। स्पेशल मैरिज अधिनियम, 1954: यह अधिनियम विशेष रूप से असामन्य स्थितियों में विवाह के मामलों को नियंत्रित करने के लिए है। मेंटेनेंस केस में, एक पति या पत्नी दूसरे पति या पत्नी से आर्थिक सहायता की मांग कर सकते हैं जब वे आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और स्वयं का पालन-पोषण करने के लिए असमर्थ होते हैं। कोर्ट या न्यायिक प्राधिकृत अधिकारी मेंटेनेंस आर्डर पास कर सकता है, जिसके तहत एक पति या पत्नी को दूसरे पति या पत्नी को आर्थिक सहायता देने के लिए आदेश दिया जा सकता है। यह स्थिति आपके और आपके परिवार के आपसी संबंधों, आपके विवाह संबंधों, आपके आर्थिक स्थिति आदि पर निर्भर करेगी। आपको किसी कानूनी पेशेवर से मानसिक सहायता प्राप्त करने का सुझाव दिया जा सकता है जो आपकी स्थिति के आधार पर आपको विधि से सहायता प्रदान कर सकता है।
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