इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार भारत में वैध मुस्लिम विवाह (निकाह) एक पुरुष और एक महिला के बीच एक अनुबंध है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत वैध निकाह के लिए बुनियादी ज़रूरतें ये हैं: 1. प्रस्ताव और स्वीकृति (इजाब और क़बूल) विवाह को दूल्हे या उसके प्रतिनिधि द्वारा स्पष्ट प्रस्ताव (इजाब) और दुल्हन या उसके प्रतिनिधि द्वारा स्वीकृति (क़बूल) के साथ संपन्न किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव और स्वीकृति गवाहों की मौजूदगी में की जानी चाहिए। 2. गवाह कम से कम दो वयस्क, समझदार और विश्वसनीय मुस्लिम गवाहों की आवश्यकता होती है। इन गवाहों को विवाह के समय उपस्थित होना चाहिए और प्रस्ताव और स्वीकृति को सुनना चाहिए। दोनों गवाह आदर्श रूप से मुस्लिम पुरुष होने चाहिए, लेकिन महिलाएँ भी गवाह हो सकती हैं, खासकर विशिष्ट विचारधाराओं के मामले में। 3. महर (दहेज या दुल्हन का उपहार) दूल्हे को दुल्हन को महर (एक अनिवार्य उपहार, अक्सर पैसा या संपत्ति) देना चाहिए। यह मुस्लिम विवाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। महर की राशि पर दोनों पक्षों द्वारा सहमति हो सकती है और इस्लामी कानून के तहत इसकी कोई निश्चित न्यूनतम राशि नहीं है, लेकिन दूल्हे की वित्तीय स्थिति को देखते हुए यह उचित होनी चाहिए। महर तत्काल (शीघ्र महर) या बाद में भुगतान के लिए स्थगित (विलंबित महर) हो सकता है। 4. सहमति दुल्हन और दूल्हे दोनों को विवाह के लिए अपनी स्वतंत्र और पूर्ण सहमति देनी चाहिए। सहमति ज़बरदस्ती नहीं ली जानी चाहिए, और दोनों पक्षों को ऐसा निर्णय लेने के लिए कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए। यदि कोई महिला किसी पुरुष वली (संरक्षक) के संरक्षण में है, तो उसकी सहमति भी प्राप्त की जानी चाहिए। 5. विवाह की आयु इस्लामी कानून के अनुसार, विवाह तब संपन्न हो सकता है जब व्यक्ति यौवन तक पहुँच गया हो और विवाह की ज़िम्मेदारियों को समझने में सक्षम हो। भारत में, मुस्लिम विवाह अधिनियम (शरीयत आवेदन अधिनियम, 1937) के तहत, एक मुस्लिम पुरुष एक महिला से विवाह कर सकता है जो यौवन की आयु तक पहुँच चुकी है, लेकिन भारतीय कानून के अनुसार, विवाह के लिए कानूनी आयु महिलाओं के लिए 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष है। 6. कोई निषिद्ध संबंध नहीं विवाह निषिद्ध संबंधों की डिग्री के अंतर्गत नहीं आना चाहिए। इसका मतलब है कि इसमें शामिल पक्ष करीबी रिश्तेदार (जैसे भाई-बहन, माता-पिता-बच्चे, आदि) नहीं होने चाहिए। इस्लामी कानून के तहत निषिद्ध संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। 7. कानूनी क्षमता दोनों पक्षों में विवाह अनुबंध की प्रकृति को समझने की मानसिक और शारीरिक क्षमता होनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति जो पागल है, नशे में है, या अन्यथा विवाह की शर्तों को समझने में असमर्थ है, वह वैध रूप से निकाह में प्रवेश नहीं कर सकता है। 8. पंजीकरण (वैकल्पिक) जबकि मुस्लिम विवाह इस्लामी कानून के तहत पंजीकरण के बिना भी वैध है, विवादों या कानूनी मामलों के मामले में कानूनी मान्यता प्राप्त करने के लिए जोड़े को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 या मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करना उचित है। निकाहनामा दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित और दो लोगों द्वारा देखा जाने वाला पारंपरिक विवाह अनुबंध है, और यह विवाह के प्रमाण के रूप में कार्य करता है। 9. कोई पूर्व विवाह नहीं (बहुविवाह को छोड़कर) दूल्हा पहले से विवाहित नहीं होना चाहिए (उन मामलों को छोड़कर जहां इस्लामी कानून के तहत बहुविवाह की अनुमति है, यानी, एक आदमी कुछ शर्तों के तहत चार महिलाओं से विवाह कर सकता है)। यदि कोई भी पक्ष पहले से विवाहित है, तो उचित कानूनी और धार्मिक प्रक्रियाओं का पालन करने की आवश्यकता है (जैसे, तलाक या अनुमति प्राप्त करना)। 10. कोई बल या मजबूरी नहीं दोनों पक्षों को अपनी मर्जी से विवाह करना चाहिए, और कोई बल या मजबूरी नहीं होनी चाहिए (उदाहरण के लिए, इस्लामी कानून में जबरन विवाह मान्य नहीं हैं)। निकाह में मुख्य दस्तावेज निकाहनामा: विवाह प्रमाणपत्र या अनुबंध जिसमें नियम, शर्तें और महर का विवरण होता है। पहचान प्रमाण: दोनों पक्षों की पहचान सत्यापित करने वाले दस्तावेज। गवाहों के हस्ताक्षर: निकाह के दौरान मौजूद गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित। भारत में कानूनी ढांचा: जबकि मुस्लिम कानून विवाह को नियंत्रित करता है, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 और मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 जैसे अन्य कानून तलाक, भरण-पोषण और विरासत जैसे मुद्दों के मामले में अतिरिक्त सुरक्षा और कानूनी सहारा प्रदान करते हैं। निष्कर्ष एक वैध मुस्लिम विवाह (निकाह) वह है जो इस्लामी कानून की आवश्यकताओं को पूरा करता है, जिसमें आपसी सहमति, गवाहों की उपस्थिति, महर का भुगतान और दोनों पक्षों की शादी करने की कानूनी क्षमता शामिल है। हालांकि पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन कानूनी स्पष्टता और प्रमाण के लिए इसकी सिफारिश की जाती है। यदि आप किसी विशेष बारीकियों पर विचार कर रहे हैं, जैसे कि भारतीय संदर्भ में कुछ कानूनों या आवश्यकताओं की प्रयोज्यता, तो बेझिझक पूछें!
Discover clear and detailed answers to common questions about मुस्लिम कानून. Learn about procedures and more in straightforward language.