मुस्लिम कानून में, अभिभावक (वाली) विवाह प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर एक महिला के लिए। अभिभावक की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि विवाह इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप तरीके से किया जाए। अभिभावक का अधिकार महिला की स्थिति के आधार पर अलग-अलग होता है, और विवाह के लिए अभिभावक के रूप में कार्य करने वाले मुख्य वर्ग निम्नलिखित हैं: 1. पिता (या पैतृक दादा): मुस्लिम कानून में पिता एक महिला के लिए प्राथमिक अभिभावक होता है और उसे उसके वली के रूप में कार्य करने का पहला अधिकार होता है। यदि पिता अनुपलब्ध है या मर चुका है, तो पैतृक दादा (पिता के पिता) पिता की जगह लेते हैं। पिता या पैतृक दादा को अपनी बेटी या पोती की शादी की व्यवस्था करने या सहमति देने का अधिकार है, खासकर अगर वह कुंवारी या कम उम्र की हो। 2. अन्य पुरुष रिश्तेदार (पिता की अनुपस्थिति में): यदि पिता या पैतृक दादा उपलब्ध नहीं हैं, तो निम्नलिखित पुरुष रिश्तेदार प्राथमिकता के क्रम में विवाह के लिए अभिभावक के रूप में कार्य कर सकते हैं: भाई (पूरा या सौतेला भाई)। चाचा (पिता का भाई)। बेटा (यदि महिला विधवा है या उसके बच्चे हैं)। इन रिश्तेदारों को "असबा" (जो रिश्तेदारी और पुरुष वंश में सबसे निकट हैं) के रूप में जाना जाता है और यदि महिला का पिता उसके अभिभावक के रूप में कार्य करने में असमर्थ है तो वे आगे आ सकते हैं। 3. महिला की सहमति: जबकि मुस्लिम विवाह में अभिभावक की स्वीकृति महत्वपूर्ण है, महिला की सहमति सर्वोपरि है। मुस्लिम कानून की अधिकांश व्याख्याओं में, एक महिला को अपने अभिभावक द्वारा प्रस्तावित विवाह को अस्वीकार करने का अधिकार है, खासकर यदि वह कानूनी रूप से वयस्क है और अपने विवाह के बारे में निर्णय लेने में सक्षम है। यदि महिला नाबालिग नहीं है और यौवन और मानसिक परिपक्वता की आयु प्राप्त कर चुकी है, तो उसकी सहमति आवश्यक है, और वह अपने जीवनसाथी को चुन सकती है, भले ही अभिभावक उसे अस्वीकार कर दे। 4. विभिन्न न्यायशास्त्रों में वली की भूमिका: हनफ़ी विचारधारा: हनफ़ी विचारधारा के अनुसार, अभिभावक की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है, और अभिभावक की स्वीकृति के बिना विवाह को अमान्य माना जा सकता है यदि महिला कुंवारी है। शिया मुस्लिम कानून: शिया कानून में, अभिभावक की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, लेकिन महिला को अपने जीवनसाथी को चुनने में अधिक स्वायत्तता है, खासकर यदि वह वयस्कता (यौवन) तक पहुँच गई है। 5. विधवा या तलाकशुदा महिला का विवाह: एक विधवा या तलाकशुदा महिला आम तौर पर अपना अभिभावक चुनने के लिए स्वतंत्र होती है या वली (अभिभावक) की भागीदारी के बिना विवाह कर सकती है, खासकर यदि वह कानूनी रूप से वयस्क है और निर्णय लेने में सक्षम है। 6. महिला की पसंद का वली: कुछ मामलों में, महिला अपनी पसंद का अभिभावक चुन सकती है यदि प्रथागत या पारंपरिक वली उपलब्ध नहीं है या कार्य करने से इनकार करता है। यह विशेष रूप से विधवाओं या वयस्क महिलाओं के लिए मामला है जो स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहती हैं। निष्कर्ष: पिता (या उनकी अनुपस्थिति में दादा) आमतौर पर मुस्लिम कानून में विवाह के लिए प्राथमिक अभिभावक होते हैं। पिता के अनुपस्थित होने पर भाई या चाचा जैसे अन्य पुरुष रिश्तेदार वली के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालाँकि, महिला की सहमति हमेशा आवश्यक होती है, और अधिकांश मामलों में, विशेष रूप से वयस्क महिलाओं के लिए, उसे अभिभावक की राय की परवाह किए बिना अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार होता है।
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