भारत में चेक बाउंस का मामला दर्ज करने की प्रक्रिया परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 द्वारा शासित होती है, जो अपर्याप्त निधियों के कारण चेक के अनादर से संबंधित है या यदि चेक अन्य कारणों से वापस कर दिया जाता है। चेक बाउंस का मामला दर्ज करने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया इस प्रकार है: 1. चेक अनादर (बाउंस) होता है: भुगतान के लिए एक चेक प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन अपर्याप्त निधियों, खाता बंद होने या हस्ताक्षर बेमेल होने जैसे कारणों से बैंक द्वारा इसे अनादरित कर दिया जाता है। बैंक अनादर का कारण बताते हुए एक मेमो या रिटर्न मेमो जारी करता है। 2. कानूनी नोटिस भेजना: समय सीमा: चेक के अनादर के बाद, भुगतानकर्ता (शिकायतकर्ता) को बैंक से मेमो प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर चेक जारी करने वाले (चेक जारी करने वाले) को कानूनी नोटिस भेजना चाहिए। नोटिस की सामग्री: नोटिस में नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर चेक राशि का भुगतान करने की मांग करनी चाहिए। कानूनी वैधता सुनिश्चित करने के लिए नोटिस को पंजीकृत डाक या स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजा जाना चाहिए। नोटिस का उद्देश्य: कानूनी नोटिस कानूनी कार्रवाई शुरू करने से पहले भुगतान की अंतिम मांग के रूप में कार्य करता है। यह चेक जारीकर्ता को मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने का अवसर प्रदान करता है। 3. प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करें: चेक जारीकर्ता के पास भुगतान करने या वैध कारण के साथ उत्तर देने के लिए कानूनी नोटिस प्राप्त होने से 15 दिन का समय होता है। यदि चेक जारीकर्ता इस समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं करता है या जवाब नहीं देता है, तो भुगतानकर्ता कानूनी कार्रवाई कर सकता है। 4. न्यायालय में शिकायत दर्ज करना: समय सीमा: यदि चेक जारीकर्ता निर्धारित 15 दिनों के भीतर चेक राशि का भुगतान नहीं करता है, तो भुगतानकर्ता नोटिस अवधि की समाप्ति के 30 दिनों के भीतर मजिस्ट्रेट न्यायालय में परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है। न्यायालय का अधिकार क्षेत्र: शिकायत आमतौर पर उस न्यायालय में दायर की जाती है जिसके अधिकार क्षेत्र में चेक भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया था या चेक का अनादर किया गया था। 5. आवश्यक दस्तावेज: शिकायत के साथ निम्नलिखित दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने चाहिए: मूल अनादरित चेक। अनादर का कारण बताते हुए बैंक द्वारा जारी किया गया बैंक मेमो या रिटर्न मेमो। आहरणकर्ता को भेजा गया कानूनी नोटिस। नोटिस की डिलीवरी का सबूत (जैसे, पंजीकृत डाक या स्पीड पोस्ट से पावती रसीद)। शिकायत की प्रति और अन्य सहायक दस्तावेज, जैसे कि लेनदेन समझौता, यदि लागू हो। 6. न्यायालय की कार्यवाही: न्यायालय आहरणकर्ता को समन जारी करेगा, जिसमें उन्हें मुकदमे के लिए न्यायालय में उपस्थित होने के लिए कहा जाएगा। यदि आहरणकर्ता अनादर और अपराध को स्वीकार करता है, तो दोषी याचिका दर्ज की जा सकती है, और न्यायालय निर्णय पारित कर सकता है। यदि आहरणकर्ता आरोप से इनकार करता है, तो मामला मुकदमे के लिए आगे बढ़ेगा, जहां दोनों पक्ष अपने साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे। 7. चेक बाउंस के लिए दंड: धारा 138 के तहत, चेक जारी करने वाले को 2 साल तक की कैद या चेक की राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। न्यायालय मामले के तथ्यों के आधार पर उचित दंड निर्धारित करेगा। 8. वैकल्पिक उपाय: चेक बाउंस होने की स्थिति में, चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति धारा 138 के तहत आपराधिक कार्यवाही के अलावा चेक राशि की वसूली के लिए सिविल न्यायालय का भी रुख कर सकता है। मध्यस्थता या समझौता: कभी-कभी, पक्ष मामले को मुकदमे में जाने से पहले समझौता या बातचीत के माध्यम से सुलझा सकते हैं। निष्कर्ष: भारत में चेक बाउंस का मामला दर्ज करने के लिए, भुगतानकर्ता को बैंक से अनादर ज्ञापन प्राप्त करने के 30 दिनों के भीतर कानूनी नोटिस भेजना होगा। यदि चेक जारी करने वाला व्यक्ति नोटिस प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर भुगतान करने में विफल रहता है, तो भुगतानकर्ता 30 दिनों के भीतर परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत न्यायालय में शिकायत दर्ज कर सकता है। कानूनी कार्रवाई के परिणामस्वरूप चेक जारी करने वाले व्यक्ति को कारावास और जुर्माने सहित दंड मिल सकता है।
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