हां, भारतीय कानून के तहत वसूली के मुकदमे में संपत्ति जब्त की जा सकती है। बकाया की वसूली के लिए न्यायालय प्रतिवादी की संपत्ति जब्त करने का आदेश दे सकता है। जब्ती डिक्री पारित होने से पहले या बाद में हो सकती है। 1. प्री-डिक्री अटैचमेंट (ऑर्डर 38 नियम 5, सी.पी.सी.) वादी को यह साबित करना होगा कि प्रतिवादी पुनर्भुगतान से बचने के लिए संपत्ति का निपटान करने की कोशिश कर रहा है। दावे को सुरक्षित करने के लिए न्यायालय निर्णय से पहले जब्ती का आदेश दे सकता है। उदाहरण: यदि कोई देनदार भुगतान से बचने के लिए संपत्ति बेच रहा है, तो न्यायालय बिक्री पर रोक लगा सकता है। 2. पोस्ट-डिक्री अटैचमेंट (ऑर्डर 21, सी.पी.सी.) यदि न्यायालय वादी के पक्ष में डिक्री देता है, तो निर्णय को लागू करने के लिए संपत्ति जब्त की जा सकती है। चल और अचल संपत्ति जब्त की जा सकती है और नीलाम की जा सकती है। 3. जब्त की जा सकने वाली संपत्तियों के प्रकार चल संपत्ति - वाहन, बैंक खाते, शेयर, आदि। अचल संपत्ति - भूमि, मकान, भवन। वेतन/मजदूरी - कुछ शर्तों के तहत जब्त की जा सकती है। 4. संपत्ति जो कुर्क नहीं की जा सकती (धारा 60, सी.पी.सी.) आवश्यक घरेलू सामान। एक निश्चित सीमा से कम वेतन (सरकारी कर्मचारियों को सुरक्षा मिलती है)। पेंशन फंड और ग्रेच्युटी। कुछ मामलों में कृषि भूमि। 5. कुर्की की प्रक्रिया वादी को कुर्की के लिए आवेदन करना होगा। न्यायालय कुर्की आदेश जारी करता है। यदि प्रतिवादी भुगतान करने में विफल रहता है तो कुर्क की गई संपत्ति की नीलामी की जा सकती है।
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