हाँ, भारत में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए न्यायालय शुल्क देना होता है। शुल्क की राशि संपत्ति के मूल्य (ऋण और प्रतिभूतियाँ) और राज्य-विशिष्ट न्यायालय शुल्क अधिनियम पर निर्भर करती है। मुख्य बिंदु: 1. लागू कानून: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 उत्तराधिकार प्रमाणपत्रों के अनुदान को नियंत्रित करता है। न्यायालय शुल्क न्यायालय शुल्क अधिनियम (केंद्रीय या राज्य संशोधन) द्वारा नियंत्रित होते हैं। 2. शुल्क का प्रकार: शुल्क आमतौर पर आवेदन में उल्लिखित परिसंपत्तियों के मूल्य का एक प्रतिशत होता है। कुछ राज्य एक निश्चित सीमा तक निश्चित न्यूनतम शुल्क ले सकते हैं। उदाहरण (विभिन्न राज्यों के अनुसार): दिल्ली: संपत्ति के मूल्य का 0.5% अधिकतम शुल्क सीमा: ₹25,000 महाराष्ट्र: ₹50,000 तक 2% ₹50,000 से ऊपर 4% से ₹2,00,000 तक ₹2,00,000 से ऊपर 7.5% (अधिकतम सीमा के अधीन) गुजरात: बॉम्बे कोर्ट फीस अधिनियम का पालन करता है संपत्ति के मूल्य के आधार पर लगभग 2% से 7.5% तमिलनाडु: तमिलनाडु कोर्ट फीस और सूट वैल्यूएशन अधिनियम के अनुसार स्लैब सिस्टम का पालन करता है कब भुगतान करें: आमतौर पर, कोर्ट आवेदक को पूरी तरह से भुगतान किए बिना याचिका दायर करने की अनुमति दे सकता है। फिर फीस का भुगतान प्रमाणपत्र जारी होने से पहले किया जाता है, अक्सर स्टाम्प पेपर या चालान के माध्यम से। --- अतिरिक्त लागत: वकील की फीस (यदि नियुक्त किया गया हो) दस्तावेज़ीकरण शुल्क नोटरीकरण या हलफनामे की लागत
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