हां, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA) लिव-इन पार्टनर के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है। कानूनी प्रावधान: धारा 2(f) घरेलू संबंध को “विवाह की प्रकृति में” संबंधों को शामिल करने के लिए परिभाषित करती है। इसमें लिव-इन संबंध शामिल हैं, जहां महिला और पुरुष एक साथ ऐसे रहते हैं जैसे कि वे विवाहित हों, भले ही वे कानूनी रूप से विवाहित न हों। शर्तें: महिला को यह साबित करना होगा: संबंध स्थिर और निरंतर था, वे एक साझा घर में एक साथ रहते थे, यह कोई आकस्मिक या एक रात का संबंध नहीं था। मुख्य न्यायालय के फैसले: इंद्रा शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा (2013) - सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि “विवाह की प्रकृति” वाले रिश्ते में एक महिला अधिनियम के तहत संरक्षण की हकदार है। चनमुनिया बनाम वीरेंद्र सिंह (2010) - माना गया कि औपचारिक विवाह न होने पर भी, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला भरण-पोषण का दावा कर सकती है। उपलब्ध राहतें: दुर्व्यवहार (शारीरिक, भावनात्मक, आर्थिक, यौन) से सुरक्षा निवास का अधिकार भरण-पोषण बच्चों की अभिरक्षा मानसिक और भावनात्मक संकट के लिए मुआवज़ा निष्कर्ष: विवाह के समान वास्तविक लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने साथी के खिलाफ़ घरेलू हिंसा अधिनियम लागू कर सकती है, अगर वह दुर्व्यवहार का शिकार होती है। यह कानून औपचारिक वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना कमज़ोर रिश्तों में रहने वाली महिलाओं की सुरक्षा के लिए है।
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