हाँ, भारतीय कानून के तहत, अदालत पति को बच्चे के भरण-पोषण के हिस्से के रूप में बच्चे के स्कूल खर्च का भुगतान करने का निर्देश दे सकती है। मुख्य कानूनी प्रावधान और सिद्धांत: दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125: एक पिता कानूनी रूप से अपने नाबालिग बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, जिसमें शिक्षा, भोजन, कपड़े और चिकित्सा संबंधी खर्च शामिल हैं। यदि वह इनकार करता है, तो माँ या अभिभावक मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकते हैं, जो पिता को स्कूल की फीस सहित मासिक राशि का भुगतान करने का निर्देश दे सकते हैं। हिंदू कानून (यदि लागू हो): हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत, एक हिंदू पिता अपने वैध या नाजायज नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है। इसमें शिक्षा का खर्च भी शामिल है। संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890: हिरासत के मामलों में, अदालतें बच्चे के सर्वोत्तम हित के आधार पर, शिक्षा लागत सहित, बच्चे के भरण-पोषण के लिए अंतरिम या अंतिम आदेश पारित कर सकती हैं। पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984: पारिवारिक न्यायालयों को बाल संरक्षण, भरण-पोषण और शिक्षा व्यय से संबंधित आदेश पारित करने का अधिकार है। महत्वपूर्ण बिंदु: यह राशि पिता की आय और बच्चे की ज़रूरतों पर निर्भर करती है। न्यायालय बच्चे के जीवन स्तर पर विचार कर सकते हैं। यदि माँ की आय हो, तब भी पिता का कर्तव्य समाप्त नहीं होता। परिस्थितियों में परिवर्तन के आधार पर आदेशों में बाद में संशोधन किया जा सकता है। संक्षेप में, हाँ, भारतीय न्यायालय बच्चे के भरण-पोषण के अधिकार के तहत पिता को स्कूल की फीस और अन्य शिक्षा व्यय का भुगतान करने का निर्देश दे सकते हैं और देते भी हैं।
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