Answer By law4u team
फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) भारत में बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक प्रकार का बचत साधन है, जहाँ आप एक निश्चित अवधि के लिए पूर्व निर्धारित ब्याज दर पर एकमुश्त राशि जमा करते हैं। फिक्स्ड डिपॉजिट की मुख्य विशेषता यह है कि आपके द्वारा निवेश की गई राशि एक निश्चित अवधि के लिए खाते में रखी जाती है और परिपक्वता तिथि से पहले बिना किसी जुर्माने के निकाली नहीं जा सकती (कुछ विशिष्ट मामलों को छोड़कर)। फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की मुख्य विशेषताएँ: 1. फिक्स्ड अवधि: FD निवेश एक निश्चित अवधि के लिए किया जाता है, जो 7 दिनों से लेकर 10 वर्षों तक होती है। आप अपने वित्तीय लक्ष्यों के आधार पर अवधि चुन सकते हैं। 2. ब्याज दर: FD पर ब्याज दर जमा के समय तय होती है और पूरी अवधि के दौरान समान रहती है। ब्याज दरें आमतौर पर 3% से 7% प्रति वर्ष तक होती हैं, जो बैंक, जमा अवधि और निवेशक के आयु वर्ग पर निर्भर करती हैं। वरिष्ठ नागरिकों को अक्सर अधिक ब्याज दरें मिलती हैं। 3. ब्याज भुगतान विकल्प: ब्याज का भुगतान मासिक, तिमाही, अर्ध-वार्षिक, या वार्षिक किया जा सकता है। कुछ FD संचयी ब्याज का विकल्प भी प्रदान करते हैं, जहाँ ब्याज चक्रवृद्धि होता है और परिपक्वता पर भुगतान किया जाता है। मासिक या त्रैमासिक भुगतान उन लोगों के लिए उपयोगी होते हैं जो अपने FD निवेश से नियमित आय चाहते हैं। 4. समयपूर्व निकासी: समयपूर्व निकासी (परिपक्वता तिथि से पहले) की अनुमति है, लेकिन इसमें आमतौर पर एक जुर्माना लगता है, जो आमतौर पर कम ब्याज दर (आमतौर पर सहमत दर से 0.5% से 1% कम) के रूप में होता है। आपात स्थिति में, आप अपनी FD पर ऋण भी ले सकते हैं। 5. न्यूनतम और अधिकतम जमा राशि: FD के लिए न्यूनतम जमा राशि विभिन्न बैंकों में अलग-अलग होती है, लेकिन आमतौर पर लगभग ₹1,000 होती है। FD में जमा की जा सकने वाली राशि की कोई निश्चित ऊपरी सीमा नहीं है। हालाँकि, कुछ मामलों में अधिक जमा राशि पर उच्च ब्याज दर या अतिरिक्त लाभ मिल सकते हैं। 6. कर व्यवस्था: FD पर अर्जित ब्याज अन्य स्रोतों से आय के अंतर्गत कर योग्य होता है और यदि यह एक वित्तीय वर्ष में ₹40,000 (वरिष्ठ नागरिकों के लिए ₹50,000) से अधिक है, तो स्रोत पर कर कटौती (TDS) के अधीन होता है। यदि कुल ब्याज आय TDS सीमा से कम है, तो भी यह कर के अधीन है, और खाताधारक को रिटर्न दाखिल करना होगा। कर बचत सावधि जमा: कुछ सावधि जमाएँ विशेष रूप से आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर लाभ प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इनकी लॉक-इन अवधि 5 वर्ष की होती है और आप अधिकतम ₹1.5 लाख प्रति वर्ष कर कटौती का दावा कर सकते हैं। 7. सुरक्षा: सावधि जमाओं को सुरक्षित निवेश माना जाता है, क्योंकि इन्हें बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा समर्थित किया जाता है। भारत में, बैंक में प्रति जमाकर्ता ₹5 लाख तक की जमा राशि का बीमा जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) द्वारा किया जाता है। 8. बाजार जोखिम नहीं: इक्विटी निवेशों के विपरीत, सावधि जमाएँ बाजार जोखिम के अधीन नहीं होती हैं, जिससे ये कम जोखिम वाला निवेश विकल्प बन जाती हैं। इनका रिटर्न पहले से ज्ञात होता है और बाजार के उतार-चढ़ाव से अप्रभावित रहता है। 9. ब्याज दरों में बदलाव: यद्यपि FD की अवधि के लिए ब्याज दर निश्चित होती है, बैंक समय-समय पर अपनी ब्याज दरों में संशोधन करते हैं, बाज़ार की स्थितियों या भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति के आधार पर। हालाँकि, एक बार निवेश करने के बाद आपकी ब्याज दर स्थिर रहती है। सावधि जमा के लाभ: सुरक्षा: चूँकि FD एक कम जोखिम वाला निवेश है, इसलिए यह कम जोखिम सहन करने वाले व्यक्तियों, जैसे सेवानिवृत्त व्यक्ति, अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बचत करने वाले माता-पिता, या स्थिर रिटर्न चाहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए उपयुक्त है। निश्चित रिटर्न: आपको FD की अवधि के दौरान आपको कितना ब्याज मिलेगा, इसकी सटीक जानकारी होती है, जो भविष्य की वित्तीय योजना बनाने में मदद कर सकता है। लचीली अवधि: FD की अवधि आपके वित्तीय लक्ष्यों के अनुसार चुनी जा सकती है, चाहे वह अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक। बाज़ार में कोई उतार-चढ़ाव नहीं: शेयर बाज़ार से जुड़े निवेशों के विपरीत, FD पर मिलने वाला रिटर्न बाज़ार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होता। FD पर ऋण: आपात स्थिति में, आप अपनी FD पर प्रतिस्पर्धी ब्याज दरों पर ऋण ले सकते हैं। सावधि जमा के नुकसान: जोखिम भरे निवेशों की तुलना में कम रिटर्न: FD पर मिलने वाला रिटर्न आमतौर पर शेयरों, म्यूचुअल फंड, या रियल एस्टेट से मिलने वाले रिटर्न से कम होता है। हो सकता है कि यह मुद्रास्फीति से ज़्यादा रिटर्न न दे। बंधी हुई पूँजी: आपकी धनराशि एक निश्चित अवधि के लिए लॉक हो जाती है, और समय से पहले निकासी पर अक्सर जुर्माना लगता है। इससे तरलता कम हो जाती है। ब्याज पर कर: अर्जित ब्याज कर योग्य है, और यदि यह एक वर्ष में ₹40,000 (वरिष्ठ नागरिकों के लिए ₹50,000) से अधिक है, तो स्रोत पर कर काटा जाता है। मुद्रास्फीति जोखिम: सावधि जमा पर मिलने वाला रिटर्न हमेशा मुद्रास्फीति से बेहतर नहीं हो सकता, जिसका अर्थ है कि समय के साथ धन की क्रय शक्ति कम हो सकती है। सावधि जमा के प्रकार: नियमित सावधि जमा: FD का मूल रूप जिसमें आप एक निश्चित अवधि के लिए एकमुश्त राशि एक निश्चित ब्याज दर पर जमा करते हैं। संचयी सावधि जमा: ब्याज चक्रवृद्धि होता है और परिपक्वता पर मूल राशि के साथ भुगतान किया जाता है। गैर-संचयी सावधि जमा: ब्याज का भुगतान नियमित अंतराल पर किया जाता है, जैसे मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक। कर-बचत सावधि जमा: ये FD 5 वर्ष की लॉक-इन अवधि के साथ आते हैं और आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत कर कटौती की अनुमति देते हैं। वरिष्ठ नागरिक सावधि जमा: 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को दी जाने वाली उच्च ब्याज दरों वाली FD। सावधि जमा कैसे खोलें? चरण 1: वह बैंक या वित्तीय संस्थान चुनें जहाँ आप FD खोलना चाहते हैं। चरण 2: जमा राशि और अवधि तय करें। चरण 3: FD आवेदन पत्र भरें और आवश्यक दस्तावेज़ जैसे पहचान प्रमाण, पते का प्रमाण, पैन कार्ड आदि प्रदान करें। चरण 4: एकमुश्त राशि जमा करें, और आपको अपनी जमा राशि का विवरण युक्त एक FD रसीद प्राप्त होगी। चरण 5: आप अपनी ब्याज भुगतान आवृत्ति (मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक या परिपक्वता पर) चुन सकते हैं। निष्कर्ष: सावधि जमा (FD) उन रूढ़िवादी निवेशकों के लिए एक आदर्श निवेश विकल्प है जो पूँजी सुरक्षा और स्थिर रिटर्न चाहते हैं। हालाँकि यह उच्चतम रिटर्न नहीं देता है, लेकिन इसकी सुरक्षा और पूर्वानुमान इसे सेवानिवृत्त लोगों और अल्पकालिक बचत की तलाश करने वालों सहित कई प्रकार के निवेशकों के लिए आकर्षक बनाता है। हालाँकि, यदि आप अधिक रिटर्न चाहते हैं, तो आप म्यूचुअल फंड, स्टॉक या बॉन्ड जैसे अन्य निवेश विकल्पों पर विचार कर सकते हैं।