Answer By law4u team
घरेलू हिंसा मामलों के लिए नियमावली और कानून देश के कानूनी नियमों और प्रावधानों के तहत विशेष रूप से बनाई गई होती है। निम्नलिखित तरीके से आमतौर पर नियमावली घरेलू हिंसा के मामलों को व्यवस्थित करती है: The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 (पुरुषों के खिलाफ स्त्री संरक्षण कानून, 2005): यह कानून भारत में घरेलू हिंसा के मामलों को रोकने और विकलांगता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया है। इसमें घरेलू हिंसा के खिलाफ कार्रवाई के लिए विशेष नियम और प्रावधान शामिल हैं। Indian Penal Code (IPC) (भारतीय दण्ड संहिता): IPC में घरेलू हिंसा के कई प्रकार के अपराधों के लिए दण्ड और सजा की व्यवस्था है, जैसे कि धारा 498-A (क्रूर प्रताड़ना), धारा 304-B (डावरी में मौत के लिए पुरुष की उत्पीड़ना), और धारा 323 (आपराधिक क़त्ल का प्रयास) आदि। Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012 (बच्चों की यौन अपराधों से बचाव कानून, 2012): यह कानून बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की व्यवस्था करता है। Criminal Procedure Code (CrPC) (दण्ड प्रक्रिया संहिता): CrPC में घरेलू हिंसा के खिलाफ जाँच, कार्रवाई, और अदालती प्रक्रिया के निर्देश दिए गए हैं। नियमावली घरेलू हिंसा के मामलों में पीड़ितों के सुरक्षा और न्याय की सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई होती है और प्राधिकृतिकरण के नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करती है। यदि आपको घरेलू हिंसा का शिकार बनाया जाता है या आपके पास किसी को सहायता देने की आवश्यकता है, तो आपको स्थानीय पुलिस या समाज कल्याण संस्था से संपर्क करना चाहिए। कृपया ध्यान दें कि घरेलू हिंसा के मामलों में सामान्य नियम और कानूनी प्रावधानों के अलावा, आपकी स्थिति के आधार पर विशेष कानूनी सलाह की आवश्यकता हो सकती है।