भारतीय कानून के तहत साइबर जासूसी या अनधिकृत डेटा अवरोधन क्या है?

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Answer By law4u team

भारतीय कानून के तहत, साइबर जासूसी या अनधिकृत डेटा अवरोधन को आम तौर पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) और अन्य प्रासंगिक क़ानूनों के विभिन्न प्रावधानों के तहत संबोधित किया जाता है। ये कानून कंप्यूटर सिस्टम तक अनधिकृत पहुँच, इलेक्ट्रॉनिक संचार को रोकना और जासूसी से संबंधित गतिविधियों को अपराध मानते हैं। साइबर जासूसी और अनधिकृत डेटा अवरोधन से संबंधित मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं: 1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम): धारा 43: अनधिकृत पहुँच: यह धारा कंप्यूटर सिस्टम, नेटवर्क या डेटा तक अनधिकृत पहुँच को दंडित करती है। इसमें हैकिंग, डेटा की अनधिकृत कॉपी या डाउनलोड करना और कंप्यूटर सिस्टम में व्यवधान जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। धारा 66: कंप्यूटर से संबंधित अपराध: आईटी अधिनियम की धारा 66 कंप्यूटर से संबंधित विभिन्न अपराधों को संबोधित करती है, जिसमें कंप्यूटर सिस्टम तक अनधिकृत पहुँच, डेटा चोरी और कंप्यूटर सिस्टम या डेटा को नुकसान पहुँचाने वाले कार्य शामिल हैं। धारा 66सी: पहचान की चोरी: यह धारा पहचान की चोरी से संबंधित है, जिससे किसी अन्य व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, पासवर्ड या किसी अन्य विशिष्ट पहचान विशेषता का धोखाधड़ी से उपयोग करना अपराध बन जाता है। धारा 66डी: कंप्यूटर संसाधन का उपयोग करके व्यक्ति के रूप में धोखाधड़ी: कंप्यूटर संसाधन के उपयोग के माध्यम से व्यक्ति के रूप में धोखाधड़ी करना अपराध है। धारा 66ई: गोपनीयता का उल्लंघन: धारा 66ई किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके निजी क्षेत्र की छवि को कैप्चर, प्रकाशित या प्रसारित करके गोपनीयता के उल्लंघन के अपराध से संबंधित है। धारा 72: गोपनीयता का उल्लंघन: यह धारा आईटी अधिनियम के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय प्राप्त जानकारी के प्रकटीकरण को दंडित करती है, जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति को गलत लाभ या हानि होती है। 2. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी): धारा 378: चोरी: आईपीसी की धारा 378 चोरी को संबोधित करती है, जिसमें किसी अन्य व्यक्ति की सहमति के बिना उसके कब्जे से चल संपत्ति को बेईमानी से हटाना शामिल है। धारा 379: चोरी के लिए सजा: यह धारा चोरी के लिए सजा प्रदान करती है, जिसमें कारावास और/या जुर्माना शामिल है। धारा 408: आपराधिक विश्वासघात: यह धारा किसी लोक सेवक, बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात से संबंधित है, जिसमें उन्हें सौंपी गई संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग शामिल है। 3. आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923: आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 जासूसी से संबंधित अपराधों से संबंधित है, जिसमें राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक सूचना का अनधिकृत संचार शामिल है। 4. धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002: यह अधिनियम धन शोधन अपराधों को संबोधित करता है, जिसमें साइबर जासूसी या अनधिकृत डेटा अवरोधन की आय शामिल है। निष्कर्ष: भारतीय कानून के तहत, साइबर जासूसी या अनधिकृत डेटा अवरोधन को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, भारतीय दंड संहिता, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और अन्य प्रासंगिक क़ानूनों के प्रावधानों के माध्यम से संबोधित किया जाता है। ये कानून कंप्यूटर सिस्टम तक अनधिकृत पहुंच, इलेक्ट्रॉनिक संचार को बाधित करना, डेटा की चोरी और जासूसी से संबंधित गतिविधियों जैसे कार्यों को अपराध मानते हैं। अपराध की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर अपराधियों को कारावास, जुर्माना या अन्य दंड का सामना करना पड़ सकता है। कानूनी ढांचे का उद्देश्य साइबर खतरों से बचाव, राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना और इलेक्ट्रॉनिक डेटा और संचार की अखंडता और गोपनीयता सुनिश्चित करना है।

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