Answer By law4u team
भारत में चेक बाउंस के मामलों को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के तहत नियंत्रित किया जाता है। संबंधित प्रावधान धारा 138 से धारा 147 के अंतर्गत हैं, जो विशेष रूप से फंड की कमी या अन्य कारणों से चेक के अनादर से निपटते हैं। कानून के मुख्य पहलू हैं: धारा 138: चेक का अनादर: यह फंड की कमी या चेक के खाते में बैलेंस से अधिक होने के कारण चेक बाउंस होने को आपराधिक अपराध बनाता है। चेक जारी करने वाले को जुर्माना और कारावास सहित दंड का सामना करना पड़ सकता है। लागू होने की शर्तें: चेक कानूनी रूप से लागू होने वाले ऋण या देयता के निर्वहन के लिए जारी किया गया होना चाहिए। चेक को इसकी वैधता अवधि (आमतौर पर जारी होने की तारीख से 3 महीने) के भीतर बैंक में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। भुगतानकर्ता को बैंक से अनादर ज्ञापन प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर चेक के अनादर की सूचना जारीकर्ता को देनी चाहिए। कानूनी नोटिस: भुगतानकर्ता को चेक अनादर के 15 दिनों के भीतर चेक की राशि के भुगतान की मांग करते हुए कानूनी नोटिस भेजना चाहिए। यदि चेक जारीकर्ता नोटिस प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर भुगतान करने में विफल रहता है, तो शिकायत दर्ज की जा सकती है। शिकायत दर्ज करना: शिकायत नोटिस अवधि की समाप्ति के 30 दिनों के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज की जानी चाहिए। मामला उस क्षेत्राधिकार में दायर किया जाता है जहाँ भुगतानकर्ता का बैंक (जहाँ चेक प्रस्तुत किया गया था) स्थित है। दंड: अदालत चेक की राशि के दोगुने तक का जुर्माना लगा सकती है। चेक जारीकर्ता को 2 साल तक की कैद या दोनों की सजा भी हो सकती है। धारा 147: अपराधों का समझौता: चेक बाउंस के मामले समझौता योग्य होते हैं, जिसका अर्थ है कि पक्ष मुकदमे के किसी भी चरण में अदालत के बाहर मामले को सुलझा सकते हैं। यह ढांचा चेक अनादर के मामलों में जवाबदेही और समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करता है, साथ ही समाधान के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।