क्या भारत में बाल हिरासत मामलों में दादा-दादी या अन्य रिश्तेदारों को अभिभावक नियुक्त किया जा सकता है?

Answer By law4u team

हां, भारत में बाल हिरासत मामलों में दादा-दादी या अन्य रिश्तेदारों को अभिभावक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। ऐसे मामलों में प्राथमिक विचार हमेशा बच्चे के सर्वोत्तम हित और कल्याण का होता है। यहाँ प्रक्रिया और विचारों का विस्तृत विवरण दिया गया है: कानूनी ढाँचा 1. अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 भारत में नाबालिगों के लिए अभिभावकों की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है। यह अधिनियम बच्चे या अभिभावक के धर्म के बावजूद लागू होता है। 2. व्यक्तिगत कानून विभिन्न व्यक्तिगत कानून भी हिरासत के निर्णयों को प्रभावित करते हैं: हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956: हिंदुओं पर लागू, यह बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि मानता है। मुस्लिम कानून: मुस्लिम कानून के तहत, अभिभावकत्व की अवधारणा को मान्यता दी गई है, और बच्चे का कल्याण भी सर्वोपरि है। अन्य व्यक्तिगत कानून: ईसाई और पारसी व्यक्तिगत कानूनों में भी अभिभावकत्व से संबंधित प्रावधान हैं, लेकिन वे अंततः कल्याण सिद्धांत को टालते हैं। अभिभावकों की नियुक्ति 1. न्यायालय की भूमिका आवेदन: दादा-दादी सहित रिश्तेदार नाबालिग की संरक्षकता के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं। बच्चे के सर्वोत्तम हित: न्यायालय बच्चे के सर्वोत्तम हित निर्धारित करने के लिए विभिन्न कारकों पर विचार करता है, जिसमें बच्चे की आयु, लिंग, भावनात्मक और शैक्षिक आवश्यकताएँ और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अभिभावक की क्षमता शामिल है। 2. न्यायालय द्वारा विचार किए जाने वाले कारक बच्चे का कल्याण: यह सर्वोपरि विचार है। न्यायालय बच्चे की शारीरिक, भावनात्मक और शैक्षिक आवश्यकताओं को देखता है। बच्चे की प्राथमिकता: यदि बच्चा बुद्धिमानी से अपनी प्राथमिकता तय करने के लिए पर्याप्त बड़ा है, तो न्यायालय बच्चे की इच्छाओं पर विचार कर सकता है। अभिभावक की क्षमता: न्यायालय प्रस्तावित अभिभावक की बच्चे की देखभाल करने की क्षमता का आकलन करता है, जिसमें उनकी वित्तीय स्थिरता, नैतिक चरित्र और पोषण वातावरण प्रदान करने की समग्र क्षमता शामिल है। मौजूदा संबंध: बच्चे और प्रस्तावित अभिभावक के बीच मौजूदा संबंध पर भी विचार किया जाता है। दादा-दादी या करीबी रिश्तेदार जिनका पहले से ही बच्चे के साथ संबंध है, उन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है। ऐसी परिस्थितियाँ जहाँ रिश्तेदारों पर विचार किया जाता है 1. माता-पिता की अक्षमता या मृत्यु मृत माता-पिता: यदि माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई है, तो दादा-दादी या अन्य करीबी रिश्तेदारों को अक्सर संरक्षकता के लिए विचार किया जाता है। माता-पिता की अक्षमता: यदि माता-पिता बीमारी, व्यसन या अन्य कारणों से बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ माने जाते हैं, तो रिश्तेदारों को संरक्षक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। 2. माता-पिता की सहमति स्वैच्छिक संरक्षकता: कुछ मामलों में, माता-पिता स्वेच्छा से दादा-दादी या रिश्तेदार को संरक्षक के रूप में नियुक्त करने के लिए सहमति दे सकते हैं, जिसे न्यायालय औपचारिक रूप दे सकता है। 3. परित्याग या उपेक्षा परित्यक्त या उपेक्षित बच्चे: ऐसे मामलों में जहाँ बच्चों को परित्यक्त या उपेक्षित किया जाता है, न्यायालय ऐसे रिश्तेदार को नियुक्त कर सकता है जो बच्चे की देखभाल करने के लिए इच्छुक और सक्षम हो। नियुक्ति की प्रक्रिया याचिका दायर करना: संरक्षकता चाहने वाले रिश्तेदार को उचित न्यायालय में याचिका दायर करनी चाहिए। नोटिस और सुनवाई: न्यायालय सभी इच्छुक पक्षों को नोटिस जारी करता है और याचिका का मूल्यांकन करने के लिए सुनवाई करता है। जांच और रिपोर्ट: न्यायालय जांच का आदेश दे सकता है या बाल कल्याण समितियों या अन्य अधिकारियों से रिपोर्ट मांग सकता है। निर्णय: साक्ष्य और बच्चे के सर्वोत्तम हितों के आधार पर, न्यायालय संरक्षकता पर निर्णय लेता है। निष्कर्ष भारत में बाल हिरासत के मामलों में दादा-दादी या अन्य रिश्तेदारों को वास्तव में अभिभावक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। न्यायालय का प्राथमिक ध्यान हमेशा बच्चे के कल्याण और सर्वोत्तम हितों पर होता है, यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कारकों पर विचार करते हुए कि नियुक्त अभिभावक पोषण और स्थिर वातावरण प्रदान करने के लिए सबसे उपयुक्त है। यदि आपको विशिष्ट सलाह या सहायता की आवश्यकता है, तो पारिवारिक कानून विशेषज्ञ या वकील से परामर्श करने की अनुशंसा की जाती है।

बच्चों की निगरानी Related Questions

Discover clear and detailed answers to common questions about बच्चों की निगरानी. Learn about procedures and more in straightforward language.

Law4u App Download