अपीलीय अधिकार क्षेत्र किसी उच्च न्यायालय की निचली अदालत के निर्णय की समीक्षा, संशोधन या उसे उलटने की शक्ति को संदर्भित करता है। सरल शब्दों में, जब कोई पक्ष निचली अदालत या प्राधिकरण के निर्णय से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। उच्च न्यायालय तब अपीलीय अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके यह जांचता है कि निर्णय कानूनी रूप से सही था या नहीं। भारत में, अपीलीय अधिकार क्षेत्र निम्न पर लागू होता है: 1. भारत का सर्वोच्च न्यायालय: - संविधान के अनुच्छेद 132 से 136 के तहत सिविल, आपराधिक और संवैधानिक मामलों में उच्च न्यायालयों से अपील सुनता है। - अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) भी सुन सकता है। 2. उच्च न्यायालय: - अधीनस्थ न्यायालयों (जिला न्यायालय, सत्र न्यायालय) के निर्णयों पर अपीलीय अधिकार क्षेत्र रखते हैं। - सिविल और आपराधिक दोनों अपीलों पर सुनवाई कर सकते हैं। 3. अधीनस्थ न्यायालय: - कुछ मामलों में, जिला न्यायाधीश निचली सिविल अदालतों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुन सकते हैं। मुख्य बिंदु: - अपीलीय क्षेत्राधिकार मूल क्षेत्राधिकार से भिन्न है, जहाँ किसी मामले की पहली बार सुनवाई होती है। - अपीलीय न्यायालय निचली अदालत के निर्णय को बनाए रख सकता है, उलट सकता है, या संशोधित कर सकता है। - अपील आमतौर पर एक निर्धारित समय सीमा (सीमा अवधि) के भीतर दायर की जानी चाहिए।
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