भारत संवैधानिक प्रावधानों, घरेलू कानूनों और कार्यकारी कार्रवाइयों के संयोजन के माध्यम से पर्यावरण संधियों को लागू करता है। यहाँ बताया गया है कि यह प्रक्रिया कैसे काम करती है: 1. अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर भारत, केंद्र सरकार के माध्यम से, पर्यावरण संधियों (जैसे, पेरिस समझौता, जैविक विविधता पर कन्वेंशन) पर हस्ताक्षर करता है। संघ सूची (सातवीं अनुसूची) की प्रविष्टि 14 के तहत केवल केंद्र सरकार को अंतर्राष्ट्रीय संधियों में प्रवेश करने का अधिकार है। 2. संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 51(सी): राज्य को अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने का निर्देश देता है। अनुच्छेद 253: संसद को राज्य सूची के विषयों पर भी अंतर्राष्ट्रीय संधियों को लागू करने के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार): सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को शामिल करने के लिए व्याख्या की गई। 3. विधायी कार्यान्वयन भारत संधि दायित्वों को प्रभावी बनाने के लिए घरेलू कानूनों को लागू करता है या उनमें संशोधन करता है। उदाहरण: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: भोपाल गैस त्रासदी के बाद और 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन के निर्णयों को लागू करने के लिए अधिनियमित किया गया। जैविक विविधता अधिनियम, 2002: जैविक विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) को लागू करने के लिए। ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001: भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं से जुड़ा हुआ है। 4. न्यायिक व्याख्या भारतीय न्यायालयों, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सिद्धांतों (जैसे एहतियाती सिद्धांत या प्रदूषक भुगतान करता है) का उल्लेख किया है, भले ही वे भारतीय कानून में विशेष रूप से संहिताबद्ध न हों। 5. प्रशासनिक और कार्यकारी उपाय सरकार पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के माध्यम से नियम, अधिसूचनाएँ और कार्य योजनाएँ बनाती है, जैसे: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाएँ (SAPCC) उत्सर्जन मानदंड, संरक्षण योजनाएँ, प्रभाव आकलन, आदि। निष्कर्ष: भारत अपने घरेलू कानूनों, नीतियों और कार्यों को संधि दायित्वों के साथ जोड़कर पर्यावरण संधियों को लागू करता है, साथ ही प्रवर्तन और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक और न्यायिक तंत्र का भी उपयोग करता है।
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