नहीं, भारत अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के रोम संविधि का पक्षकार नहीं है। यहाँ एक विस्तृत विवरण दिया गया है: 1. रोम संविधि क्या है? 1998 में अपनाई गई रोम संविधि वह संधि है जिसने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की स्थापना की, जो नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध, और आक्रामकता के अपराध के लिए व्यक्तियों की जाँच और मुकदमा चलाता है। 2. भारत की स्थिति भारत ने रोम संविधि पर इसके आरंभिक चरणों के दौरान हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की है, जिसका अर्थ है कि यह ICC के अधिकार क्षेत्र से कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। परिणामस्वरूप, भारत ICC का सदस्य नहीं है और भारतीय नागरिकों पर इसके अधिकार को मान्यता नहीं देता है। 3. शामिल न होने के कारण भारत ने कई चिंताएँ व्यक्त की हैं, जैसे: अपराधों की व्यापक परिभाषा, विशेष रूप से आक्रामकता का अपराध। राजनीतिकरण का डर और कुछ देशों या नेताओं को निशाना बनाने के लिए अदालत का दुरुपयोग। संप्रभुता के बारे में चिंताएँ, विशेष रूप से किसी अंतर्राष्ट्रीय निकाय द्वारा अपने नागरिकों पर मुकदमा चलाने की क्षमता के बारे में। भारत राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र में विश्वास करता है और अंतर्राष्ट्रीय अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए घरेलू तंत्र को प्राथमिकता देता है। 4. वर्तमान स्थिति अब तक, 120 से अधिक देश रोम संविधि के पक्षकार हैं। भारत अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के लिए जवाबदेही का समर्थन करना जारी रखता है लेकिन ICC के बजाय घरेलू कानूनों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा अधिदेशित तंत्र के माध्यम से ऐसा करना पसंद करता है। सारांश: भारत ICC के रोम संविधि का पक्षकार नहीं है और भारतीय नागरिकों पर इसके अधिकार क्षेत्र को मान्यता नहीं देता है। संप्रभुता, राजनीतिकरण और न्यायालय की शक्तियों के दायरे पर चिंताओं के कारण इसने संधि की पुष्टि नहीं करने का निर्णय लिया है।
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