हाँ, उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया के दौरान आम तौर पर सार्वजनिक नोटिस जारी किया जाता है। ऐसा क्यों और कब किया जाता है, इसके बारे में यहाँ बताया गया है: 1. भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत कानूनी आवश्यकता: जब कोई व्यक्ति भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 372 के तहत उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन करता है, तो अदालत - याचिका प्राप्त करने और इसकी प्रथम दृष्टया वैधता की पुष्टि करने के बाद - सार्वजनिक नोटिस जारी करती है। 2. सार्वजनिक नोटिस का उद्देश्य: सार्वजनिक नोटिस जारी करने का उद्देश्य है: आम जनता को लंबित आवेदन के बारे में सूचित करना। मृत व्यक्ति के ऋणों और प्रतिभूतियों पर आपत्ति या बेहतर दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को अवसर देना। प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और भविष्य में विवादों से बचना। 3. जारी करने का तरीका: न्यायालय किसी स्थानीय समाचार-पत्र में नोटिस जारी करता है या कभी-कभी न्यायालय के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करता है। नोटिस में प्रमाणपत्र जारी करने पर आपत्तियाँ आमंत्रित की जाती हैं। इसमें आमतौर पर 30-दिन की अवधि प्रदान की जाती है जिसके भीतर आपत्तियाँ दर्ज की जा सकती हैं। 4. इसके बाद क्या होता है: यदि निर्धारित अवधि के भीतर कोई आपत्ति प्राप्त नहीं होती है, तो न्यायालय आवेदक की सुनवाई के बाद प्रमाणपत्र जारी करने के लिए आगे बढ़ता है। यदि आपत्तियाँ दर्ज की जाती हैं, तो न्यायालय सुनवाई कर सकता है, साक्ष्य ले सकता है और फिर यह तय कर सकता है कि प्रमाणपत्र दिया जाए या नहीं। सारांश: हाँ, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्रक्रिया में सार्वजनिक नोटिस एक आवश्यक कदम है। यह न्यायालय द्वारा आवेदक को प्रमाणपत्र दिए जाने से पहले संभावित दावेदारों या आपत्तिकर्ताओं को सूचित करने के लिए एक कानूनी सुरक्षा के रूप में कार्य करता है।
Discover clear and detailed answers to common questions about उत्तराधिकार का प्रमाण पत्र. Learn about procedures and more in straightforward language.