अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) भारत में सामाजिक न्याय, श्रम अधिकार और सभ्य कार्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ इसकी भूमिका का विस्तृत विवरण दिया गया है: 1. तकनीकी सहायता और नीति समर्थन: ILO भारत सरकार को श्रम कानूनों और नीतियों का मसौदा तैयार करने और उन्हें लागू करने में तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करता है। यह श्रम और रोजगार मंत्रालय, ट्रेड यूनियनों और नियोक्ता संगठनों के साथ मिलकर उचित कार्य स्थितियों को बढ़ावा देता है। 2. श्रम मानकों को बढ़ावा देना: ILO भारत को मुख्य अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को अनुमोदित करने और लागू करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जैसे: बाल श्रम का निषेध जबरन श्रम का उन्मूलन संगठन की स्वतंत्रता सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार समान पारिश्रमिक 3. कार्यक्रम और परियोजनाएँ: ILO भारत में निम्नलिखित से संबंधित कई परियोजनाएँ चलाता है: बाल श्रम उन्मूलन महिलाओं का रोज़गार व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य अनौपचारिक क्षेत्र का विकास कौशल प्रशिक्षण और रोज़गार सृजन 4. त्रिपक्षीय वार्ता: ILO संतुलित श्रम सुधार और नीतियों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार, नियोक्ता और श्रमिकों को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देता है। 5. अनुसंधान और डेटा साझाकरण: यह भारत में मजदूरी, रोज़गार के रुझान, लैंगिक मुद्दों और कार्यस्थल सुरक्षा पर अध्ययन करता है। यह नीति निर्माण का समर्थन करने के लिए श्रम सांख्यिकी और रिपोर्ट प्रदान करता है। 6. कानूनी और संस्थागत सुधार: ILO ने भारत को श्रम कानून सुधार प्रक्रिया में मार्गदर्शन दिया है, खासकर निम्नलिखित के संहिताकरण के दौरान: मजदूरी संहिता औद्योगिक संबंध संहिता सामाजिक सुरक्षा संहिता व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 7. सतत विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करना: भारत में ILO का काम संयुक्त राष्ट्र के SDG, खासकर SDG 8 - सभ्य कार्य और आर्थिक विकास के साथ संरेखित है। संक्षेप में: ILO तकनीकी सहायता प्रदान करके, अंतर्राष्ट्रीय मानकों को प्रोत्साहित करके, रोजगार पहलों का समर्थन करके और सरकार, नियोक्ताओं और श्रमिकों के साथ सहयोग के माध्यम से उचित श्रम प्रथाओं को बढ़ावा देकर भारत को श्रम स्थितियों में सुधार करने में मदद करता है।
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