Answer By law4u team
हां, भारतीय कानून के तहत उत्तराधिकार प्रमाणपत्र को निरस्त या संशोधित किया जा सकता है। कानूनी प्रावधान: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 383 के तहत, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र को उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा कुछ आधारों पर निरस्त किया जा सकता है। निरसन के लिए आधार: प्रमाणपत्र धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया था (जैसे, कानूनी उत्तराधिकारियों या संपत्तियों को छिपाना) इसे झूठे प्रतिनिधित्व या तथ्यों को छिपाने के माध्यम से प्राप्त किया गया था बदली हुई परिस्थितियों के कारण प्रमाणपत्र बेकार या निष्क्रिय हो गया है बाद में वसीयत या कानूनी दस्तावेज पाया जाता है बेहतर हकदार व्यक्ति आगे आता है प्रक्रिया: 1. पीड़ित पक्ष को प्रमाणपत्र जारी करने वाली अदालत में निरस्तीकरण के लिए आवेदन दायर करना चाहिए। 2. अदालत नोटिस जारी करेगी और दोनों पक्षों को सुनेगी। 3. संतुष्ट होने पर, अदालत प्रमाणपत्र को निरस्त या संशोधित कर सकती है। संशोधन: मामूली सुधार (जैसे, नाम की वर्तनी, लिपिकीय त्रुटियाँ) आवेदन पर न्यायालय द्वारा संशोधित किए जा सकते हैं, यदि कोई महत्वपूर्ण अधिकार प्रभावित नहीं होते हैं। निरसन का प्रभाव: प्रमाणपत्र अमान्य और अमान्य हो जाता है। निरस्त प्रमाणपत्र के आधार पर की गई किसी भी कार्रवाई पर सवाल उठाया जा सकता है या उसे उलट दिया जा सकता है। निष्कर्ष: हाँ, यदि धोखाधड़ी, गलती या कोई वैध कानूनी आधार है तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 383 के तहत न्यायालय द्वारा उत्तराधिकार प्रमाणपत्र को निरस्त या संशोधित किया जा सकता है। निरस्तीकरण से पहले न्यायालय निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करता है।