परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर भारत का रुख इसके वर्तमान स्वरूप में हस्ताक्षर करने का कड़ा विरोध है। भारत 1968 में इसकी स्थापना के बाद से लगातार एनपीटी में शामिल होने से इनकार करता रहा है और यह रुख आज भी बरकरार है। भारत द्वारा एनपीटी का विरोध करने के प्रमुख कारण: 1. संधि की भेदभावपूर्ण प्रकृति भारत एनपीटी को भेदभावपूर्ण मानता है क्योंकि यह: केवल पाँच देशों (अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन - पी5), जिन्हें परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र (एनडब्ल्यूएस) के रूप में मान्यता प्राप्त है, के परमाणु हथियारों के कब्जे को वैध बनाता है भारत सहित अन्य सभी देशों को परमाणु हथियार हासिल करने या विकसित करने से रोकता है, जिससे एक परमाणु पदानुक्रम बनता है। 2. समयबद्ध निरस्त्रीकरण प्रतिबद्धता का अभाव भारत का मानना है कि एनपीटी में पूर्ण वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए एक ठोस और समयबद्ध योजना का अभाव है। 3. राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ भारत का इनकार सुरक्षा कारणों से भी जुड़ा है, खासकर चीन (एनपीटी का सदस्य) और पाकिस्तान (जो भी हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, लेकिन एक परमाणु शक्ति है) जैसे परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के साथ। भारत का वैकल्पिक दृष्टिकोण: हालांकि भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, फिर भी वह वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य का समर्थन करता है और निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करता है: पहले प्रयोग न करने (एनएफयू) की परमाणु नीति परमाणु परीक्षण पर स्वैच्छिक रोक (1998 में पोखरण-II के बाद) कठोर कमान और नियंत्रण प्रणालियों के साथ उत्तरदायी परमाणु सिद्धांत परमाणु हथियारों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण न करने की प्रतिबद्धता हस्ताक्षर न करने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: 2008 में, भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) से छूट मिली, जिससे उसे परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद परमाणु व्यापार में संलग्न होने की अनुमति मिली। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते ने भारत को एक उत्तरदायी परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी। भारत आईएईए सुरक्षा उपायों के तहत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग के लिए विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करता है। भारत का सुसंगत वक्तव्य: भारत एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के रूप में एनपीटी में शामिल होने पर विचार करेगा यदि यह संधि सार्वभौमिक, भेदभाव रहित और दायित्वों व अधिकारों के मामले में संतुलित हो। निष्कर्ष: भारत का रुख यह है कि एनपीटी, अपने वर्तमान स्वरूप में, अनुचित और अन्यायपूर्ण है, लेकिन वह परमाणु अप्रसार, निरस्त्रीकरण और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के प्रति प्रतिबद्ध है, और एनपीटी ढांचे के बाहर एक जिम्मेदार परमाणु रुख बनाए रखता है।
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