भारत में, कोर्ट मैरिज मुख्य रूप से विशेष विवाह अधिनियम, 1954 द्वारा शासित होती हैं। कोर्ट मैरिज क्या है? कोर्ट मैरिज धार्मिक रीति-रिवाजों के बजाय, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अदालत में या विवाह अधिकारी के समक्ष संपन्न विवाह को कहते हैं। यह धर्म, जाति या पंथ की परवाह किए बिना विवाह करने के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की मुख्य विशेषताएँ: यह बिना किसी धार्मिक अनुष्ठान के अंतरजातीय, अंतरधार्मिक या नागरिक विवाह की अनुमति देता है। विवाह का पंजीकरण और अनुष्ठान सरकार द्वारा नियुक्त एक विवाह अधिकारी द्वारा किया जाता है। अधिनियम के अनुसार, विवाह संपन्न होने से पहले 30 दिनों का नोटिस देना आवश्यक है, ताकि किसी भी आपत्ति के लिए अनुमति दी जा सके। यह विवाह और उससे जुड़े अधिकारों, जैसे उत्तराधिकार, भरण-पोषण और तलाक, को कानूनी सुरक्षा और मान्यता प्रदान करता है। दोनों पक्षों की सहमति अनिवार्य है, और दोनों पक्षों की कानूनी आयु (पुरुषों के लिए 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष) होनी चाहिए। भारत में विवाह के लिए अन्य प्रासंगिक अधिनियम: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 — हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच विवाहों को नियंत्रित करता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम, 1937 — मुस्लिम विवाहों को नियंत्रित करता है। ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 — ईसाई विवाहों को नियंत्रित करता है। पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 — पारसी विवाहों को नियंत्रित करता है। हालाँकि, इन धार्मिक पर्सनल कानूनों में आमतौर पर पारंपरिक या धार्मिक समारोह शामिल होते हैं, जबकि विशेष विवाह अधिनियम में न्यायालय विवाह शामिल हैं जो नागरिक प्रकृति के होते हैं। सारांश: अगर आप भारत में कोर्ट मैरिज करना चाहते हैं, तो विशेष विवाह अधिनियम, 1954 लागू है। यह बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाज के विवाह करने की एक धर्मनिरपेक्ष, कानूनी प्रक्रिया प्रदान करता है और सरकारी विवाह अधिकारी के माध्यम से विवाह को आधिकारिक रूप से पंजीकृत करता है।
Discover clear and detailed answers to common questions about कोर्ट मैरिज. Learn about procedures and more in straightforward language.