नहीं, भारत का सर्वोच्च न्यायालय विधायी अर्थ में कानून नहीं बना सकता, लेकिन यह अपने निर्णयों के माध्यम से कानून बना सकता है, जो संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी मिसाल बन जाता है। यह इस प्रकार काम करता है: कानून बनाने की शक्ति: केवल संसद और राज्य विधानमंडलों को संविधान (अनुच्छेद 245-246) के तहत कानून बनाने की शक्ति है। न्यायिक व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय कानूनों और संविधान की व्याख्या करता है। इसकी व्याख्या सभी निचली अदालतों और अधिकारियों पर बाध्यकारी हो जाती है। अनुच्छेद 141 - बाध्यकारी मिसाल: "सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के क्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा।" इसका मतलब है कि इसके फैसले कानून की ताकत रखते हैं, भले ही विधायिका द्वारा अधिनियमित न किए गए हों। विधायी कमियों को भरना: विधायी व्यवस्था के अभाव में, न्यायालय दिशा-निर्देश (जैसे, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए विशाखा दिशा-निर्देश) बना सकता है, जो संसद द्वारा कानून बनाए जाने तक कानून के रूप में कार्य करते हैं। निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट विधायिका की तरह “कानून नहीं बनाता है, लेकिन यह व्याख्या के माध्यम से बाध्यकारी कानूनी सिद्धांत बनाता है, जो कानून की तरह काम करते हैं जब तक कि उन्हें खारिज नहीं किया जाता या कानून द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाता।
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