एक क्यूरेटिव याचिका भारतीय न्यायिक प्रणाली में उपलब्ध एक विशेष कानूनी उपाय है, जो सभी अन्य अपीलों और समीक्षाओं के समाप्त हो जाने के बाद न्याय की विफलता को रोकने के लिए है, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय में। यहाँ एक विस्तृत विवरण दिया गया है: 1. क्यूरेटिव याचिका का उद्देश्य एक क्यूरेटिव याचिका सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय या आदेश की समीक्षा करने के लिए दायर की जाती है, जब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कथित उल्लंघन होता है या कोई स्पष्ट त्रुटि होती है जिसे समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद भी अनदेखा कर दिया गया हो। इसे दुर्लभतम उपाय माना जाता है और इसका उद्देश्य न्याय की गंभीर विफलता को ठीक करना है। 2. उत्पत्ति और कानूनी आधार क्यूरेटिव याचिका की अवधारणा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) में अपने निर्णय के माध्यम से विकसित की गई थी। किसी भी क़ानून में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन इसे संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत समीक्षा याचिका का विस्तार माना जाता है। 3. इसे कब दायर किया जा सकता है? सर्वोच्च न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश के विरुद्ध समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद ही। जब याचिकाकर्ता को लगता है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है (जैसे, पक्षकार को नहीं सुना गया) या निर्णय में इतनी बड़ी त्रुटि है कि यह गंभीर अन्याय का कारण बनती है। 4. दाखिल करने की प्रक्रिया याचिका को सर्वोच्च न्यायालय की उसी पीठ या बड़ी पीठ के समक्ष दायर किया जाना चाहिए जिसने मूल निर्णय पारित किया था। याचिकाकर्ता को अत्यावश्यकता का प्रमाण पत्र देना होगा जिसमें यह बताया गया हो कि क्यूरेटिव याचिका किस आधार पर दायर की गई है। याचिका को दूसरे पक्ष और अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल को भेजा जाता है, जो अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हैं। याचिका पर तभी विचार किया जाता है जब वह सख्त मानदंडों को पूरा करती हो; तुच्छ याचिकाओं को सरसरी तौर पर खारिज कर दिया जाता है। 5. महत्व और सीमाएं क्यूरेटिव याचिका कोई नया अधिकार प्रदान नहीं करती है बल्कि मौलिक त्रुटियों को ठीक करने के लिए एक न्यायिक तंत्र है। यह अपील और समीक्षा जैसे अन्य सभी विकल्पों के समाप्त हो जाने के बाद अंतिम न्यायिक उपाय है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अंतिमता बनाए रखने के लिए इस पर शायद ही कभी विचार किया जाता है। सारांश: क्यूरेटिव याचिका एक अंतिम उपाय है जिसे सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका के खारिज होने के बाद दायर किया जाता है ताकि न्याय की घोर विफलता या प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन को ठीक किया जा सके, न्यायिक अंतिमता को बनाए रखते हुए निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
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