Answer By law4u team
हां, कोई व्यक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपना मामला खुद ही पेश कर सकता है। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 32 और सर्वोच्च न्यायालय नियम, 2013 के आदेश IV नियम 1(c) के तहत कानूनी रूप से इसकी अनुमति है। यह इस प्रकार काम करता है: 1. व्यक्तिगत रूप से पेश होने का अधिकार: किसी भी व्यक्ति (जिसे व्यक्तिगत रूप से पक्षकार कहा जाता है) को बिना वकील के अपने मामले में पेश होने और बहस करने का कानूनी अधिकार है। यह सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी न्यायालयों पर लागू होता है। 2. सर्वोच्च न्यायालय में आवश्यकताएँ: व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से पक्षकार के रूप में याचिका दायर करनी चाहिए। न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक जांच या अनुमति देने के लिए कह सकता है: व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया को समझता है। याचिका ठीक से तैयार की गई है। व्यक्ति न्यायालय में तार्किक और सम्मानपूर्वक बहस कर सकता है। 3. न्यायालय का विवेकाधिकार: यदि न्यायालय पाता है कि व्यक्ति-व्यक्ति ठीक से बहस करने में असमर्थ है या न्यायालय के समय का दुरुपयोग कर रहा है, तो न्यायालय एक एमिकस क्यूरी (न्यायालय का मित्र) नियुक्त कर सकता है या व्यक्ति को वकील नियुक्त करने का निर्देश दे सकता है। 4. उल्लेखनीय उदाहरण: कई वादियों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने मामलों में सफलतापूर्वक बहस की है। न्यायालय इसे संवैधानिक और वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है। सारांश में: हां, कोई व्यक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक पक्ष-व्यक्ति के रूप में अपने मामले में बहस कर सकता है, लेकिन उसे न्यायालय के नियमों का पालन करना होगा और वह न्यायालय के मार्गदर्शन के अधीन हो सकता है।