Answer By law4u team
यहाँ भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कुछ ऐतिहासिक निर्णय दिए गए हैं जिनका भारतीय कानून और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है: 1. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) सिद्धांत: मूल संरचना सिद्धांत महत्व: संसद संविधान के "मूल संरचना" में परिवर्तन नहीं कर सकती। इस मामले ने संवैधानिक संशोधनों की शक्ति को सीमित कर दिया। 2. मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) सिद्धांत: अनुच्छेद 21 की विस्तृत व्याख्या महत्व: अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित होनी चाहिए। इसने मौलिक अधिकारों के दायरे को व्यापक बनाया। 3. इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण (1975) सिद्धांत: चुनाव कानूनों की न्यायिक समीक्षा महत्व: इंदिरा गांधी के चुनाव को वैध ठहराने के लिए पारित कानूनों को रद्द किया गया, जिससे विधि के शासन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बल मिला। 4. मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985) सिद्धांत: सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण मुस्लिम महिलाओं पर लागू होता है महत्व: एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार है। इसी के परिणामस्वरूप मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 लागू हुआ। 5. विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) सिद्धांत: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न संबंधी दिशानिर्देश महत्व: यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए विशाखा दिशानिर्देश निर्धारित किए गए, जिन्हें बाद में POSH अधिनियम, 2013 में संहिताबद्ध किया गया। 6. नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) सिद्धांत: समलैंगिकता का गैर-अपराधीकरण महत्व: भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध बनाना) को असंवैधानिक करार दिया गया। 7. न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ (2017) सिद्धांत: निजता का अधिकार महत्व: घोषित किया गया कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। 8. एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) सिद्धांत: संघवाद और राष्ट्रपति शासन महत्व: अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के मनमाने इस्तेमाल पर रोक लगाई और धर्मनिरपेक्षता पर ज़ोर दिया। 9. ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985) सिद्धांत: अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका का अधिकार महत्व: फुटपाथ पर रहने वालों को बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के बेदखल करना जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। 10. शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017) सिद्धांत: तीन तलाक असंवैधानिक महत्व: तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक और अमान्य घोषित किया गया।